GDP: भारत की निजी खपत में मजबूत वृद्धि देखी गई है। यह दो दशकों में देश के सकल घरेलू उत्पाद में उच्चतम हिस्सेदारी तक पहुंच गई है। वित्त मंत्रालय के नवीनतम मासिक रिपोर्ट में यह जानकारी मिली। निजी खपत का मतलब है, व्यक्तिगत या घरेलू स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं पर किया जाने वाला खर्च। यह किसी देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भारत की जीडीपी में निजी खपत की हिस्सेदारी बढ़कर 61.4 प्रतिशत
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में भारत की जीडीपी में निजी खपत की हिस्सेदारी बढ़कर 61.4 प्रतिशत हो गई। यह वित्त वर्ष 2024 में 60.2 प्रतिशत थी। यह पिछले दो दशकों में दूसरा सबसे ऊंचा स्तर है, जो उपभोग मांग में निरंतर मजबूती का संकेत देता है। निजी खपत में यह वृद्धि मुख्य रूप से स्थिर निवेश गतिविधि और शुद्ध निर्यात में बढ़ोतरी से प्रेरित थी।
वित्त वर्ष 2020 के दौरान महामारी-पूर्व औसत 28.6 प्रतिशत से भी अधिक
वहीं निवेश के मामले में सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में वित्त वर्ष 2025 में 7.1 प्रतिशत का उछाल आया है। यह वित्त वर्ष 2024 में दर्ज 8.8 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में थोड़ा कम है। सकल स्थिर पूंजी निर्माण, किसी निश्चित अवधि के दौरान किसी देश में उत्पादरों द्वारा स्थायी परिसंपत्तियों ( जैसे मशीनरी, उपकरण, भवन और बुनियादी ढांचा) में किए गए शुद्ध निवेश को मापता है। जीएफसीएफ का सकल घरेलू उत्पाद में 29.9 प्रतिशत हिस्सा है, जो पिछले दो वर्षों की तुलना में कम है। हालांकि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 के दौरान महामारी-पूर्व औसत 28.6 प्रतिशत से अभी भी अधिक है।