7 अप्रैल से वैशाख का महीना शुरु हो गया है। ज्यादा गर्मियों की शुरुआत इसी महीने से हो जाती है। यानि वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से लेकर ज्येष्ठ मास तक भयंकर गर्मियां पड़ती है। इस भयंकर गर्मी से बचने के लिए लोग ना सिर्फ ज्यादा पानी पीते है बल्कि अपने ईष्ट महादेव को भी गर्मी से बचाने के लिए शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधते है। गलंतिका से बूंद- बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है जिससे उन्हें भी गर्मी से राहत मिलती है। चलिए जानते है आखिर शिवलिंग पर गलंतिका बांधने की परंपरा कब से और क्यों चली आ रही है।
इसलिए बांधी जाती है गलंतिका
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन में सबसे पहले कालकूट नामक भयंकर विष निकला था। इस विष में पूरी सृष्टि के विनाश करने की क्षमता थी। इसलिए भगवान शंकर ने उस विष को पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास में महादेव पर विष का असर होने लगता है। उनके शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित करने के लिए 2 माह तक शिवलिंग के शीश पर मिट्टी के कलशों की गलंतिका बांधी जाती है। इन गलंतिका से एक-एक बूंद पानी लगातार गिरता है।
महाकालेश्वर मंदिर में 11 कलश की गलंतिका बांधी गई
इस बार Ujjain के विश्व प्रसिद्ध Mahakaleshwar Temple में बाबा महाकाल के शिवलिंग पर मिट्टी के 11 कलश के जरिए जलधारा प्रवाहित की गई है। जो वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आने वाले 2 महीने यानी ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तक हर दिन जलधारा प्रवाहित होगी। बाबा महाकाल मंदिर में यह परंपरा सालों से निभाई जा रही है।
यदि आपके घर में भी शिव मंदिर है तो भी आप गलन्तिका बांध सकते है। इस बात पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए कि गलन्तिका में पानी हमेशा भरा रहे और पानी भी शुद्ध हो। मटकी यदि बांधे तो छिद्र छोटा ही रखे, ताकि बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर प्रवाहित होता रहे।