संतान की खुशहाली और उसकी लंबी कामना की लिए जितिया व्रत किया जाता है। बिहार के मिथलांचल सहित, पूर्वांचल और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में काफी लोग जितिया का व्रत करते हैं। क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर किए जाने वाले इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे या कई बार उससे भी ज्यादा समय के लिए महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत भी बोला जाता है।
जितिया व्रत प्रतिवर्ष अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। वैसे तो इस व्रत की शुरूआत सप्तमी तिथि से नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है। और नवमी तिथि को इस व्रत का पारण के साथ इसका समापन किया जाता है। इस व्रत को शुरू करने को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में खानपान की अपनी अलग-अलग परंपरा है। और यह परंपरा बेहद दिलचस्प है। तो आइए जानें जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी परंपराओं के बारे में...
जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त 2021
जीवित्पुत्रिका व्रत डेट और वार - साल 2021, में जीवित्पुत्रिका व्रत 29 सितंबर 2021, दिन बुधवार को रखा जाएगा। यह व्रत तीन दिन का होता है, जोकि 28 सितंबर से 30 सितंबर तक मनाया जाएगा।
अष्टमी तिथि प्रारंभ - 28 सितंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त - 29 सितंबर की रात्रि 8 बजकर 29 मिनट से।
नहाय-खाय - 28 सितंबर को नहाय-खाय
व्रत - 29 सितंबर को निर्जल व्रत और
पारण - 30 सितंबर को पारण
जितिया व्रत में खा सकते हैं ये चीज
मछली खाना
वैसे तो पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार को वर्जित माना गया है, लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में, जैसे कि मिथलांचल में जितिया व्रत के उपवास की शुरूआत मछली खाकर की जाती है। इसके पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा है। इस कथा के आधार पर मान्यता है कि मछली खाने से व्रत की शुरूआत करनी चाहिए। और यहां मछली खाकर इस व्रत की शुरूआत करना बहुत शुभ माना जाता है।
नोनी का साग
इस व्रत में नोनी का साग बनाने की परंपरा और खाने की परंपरा है। नोनी में केल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है। ऐसे में इसे लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की शिकायत नहीं होती है। और पाचन भी ठीक रहता है। इसलिए नहाय-खाय के दिन ही नोनी का साग खाया जाता है। और पारण के दिन भी नोनी का साग खाया जाता है।
झिंगनी
इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी की सब्जी भी खाई जाती है। झिंगनी आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं। और यह बिहार के क्षेत्रों में भी खाई जाती है।