Bhumi Pujan: आपने अक्सर अपने बड़ों से कहते सुना होगा कि धरती हमारी मां हैं। दरअसल हिंदू शास्त्रों में धरती को मां का दर्जा मिला हुआ है। इसलिए सुबह उठते ही धरती को दांए हाथ से छू-कर हथेली को माथे से लगाने की परंपरा है, ताकि हम धरती मां के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें, उन्हें सम्मान दे सकें। अन्न,जल,औषधियां,फल-फूल,वस्त्र एवं आश्रय आदि सब धरती की ही तो देन है, जो भी हम इसमें बोते हैं , उसे ही पल्लवित-पोषित करके हमें पुनः दे देती है। इसलिए हम सब धरती माता के ऋणी हैं।
ज्योतिष शास्त्र में इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा गया है कि हर व्यक्ति को सुबह उठकर धरती को प्रणाम करना चाहिए। चलिए जानते हैं कि भूमि वंदना कैसे की जाती हैं...
भूमि वंदना के लिए मंत्र
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते ।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे ॥
अर्थात समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली, पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी है माता पृथ्वी! आप मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।
इन रुपों में होता है भूमि पूजन---
-किसी भी तरह की पूजा व अनुष्ठान शुरु करने से पहले उस जगह को धोकर, जल छिड़क कर, चाक पूरकर ही मूर्ति, कलश,दीपक या पूजा की थाली रखी जाती है।
- स्टेज पर कलाकार अपनी कला दिखाने से पहले धरती को छूकर प्रणाम करते हैं।
- मंदिर में जाने से पहले भी धरती को छूकर आर्शीवाद लिया जाता है।
- आज भी बच्चे को नए कपड़े पहनाने से पहले धरती से स्पर्श करवाया जाता है। यह सब धरती मां की मानसिक पूजा का ही एक रूप है।
- मकान-दुकान आदि के निर्माण कार्य में सर्वप्रथम भूमि पूजन ही किया जाता है। विशेष मंत्रों के द्वारा मां भूमि से प्रार्थना की जाती है कि हे मां ! हम आपके ऊपर भार डाल रहें हैं,उसके लिए आप हमें क्षमा करें।
- नए घर को बनाते समय घर की नींव में चांदी का सर्प रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि हमारी पृथ्वी सर्प के फन पर टिकी हुई है।
- किसानों के द्वारा उत्तम फसल की प्राप्ति के लिए फसल बोने से पूर्व धरती पूजन किया जाता है।
- नए घर में प्रवेश करने से पहले भी दहलीज की पूजा की जाती है। विवाह के समय भी नई बहू के द्वारा रोली, चावल, फल-मिठाई आदि से दहलीज की पूजा करवाई जाती है।
- व्यवहारिक दृष्टि से भूमि वंदना इंसान को ज़मीन से जुड़े रहकर अहंकार से परे हटाकर सहनशील ,धैर्यवान और क्षमाशील जीवन जीने का सन्देश देती है।
ऐसा करने के पीछे का कारण है की माता के समान पूज्यनीय होने से भूमि पर पैर रखना दोष का कारण माना गया है, पर भूमि स्पर्श से तो कोई बच नहीं सकता। इसलिए शास्त्रों में भूमि पर पैर रखने की विवशता के कारण ही भूमि वंदना की जाती है।