World Poetry Day 2023: 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रुप में मनाया जाता है। एक कवि शब्दों को खूबसूरती से पीरोकर कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को कहने की कला रखता है। प्रेम से लेकर हर तरह की भावना को कविता के माध्यम से कहा जा सकता है। प्रेम और खूबसूरती को बयां करने के लिए कविताओं से बेहतर माध्यम कुछ भी नही है।
कविताएं कल्पना, विचारों तथा शब्दों के बेहतरीन तालमेल से बनती है तथा कविता हर किसी को पसंद भी आती है। कविता भावों की वो श्रृंखला है जो मन से मन को जोड़ने का कार्य करती है। आज हम इस लेख में मीरा बाई की प्रसिद्ध कविताओं के बारे में बताएंगे जिसका एक एक शब्द बस कान्हा के नाम से रमा है।
कविता हमेशा से ही जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा रहा है। भक्ति और प्रेम को व्यक्त करने के लिए इसे हमेशा ही सर्वोपरि और बेहतर माना गया है। तभी तो मीरा बाई ने अपनी कविताओं से कृष्ण की भक्ति और प्रेम को भक्तिपूर्ण पहलुओं से जोड़कर सजाया। कृष्ण को लेकर मीरा के मन ऐसी छवि थी कि बालकाल से लेकर मृत्यु तक मीरा ने सिर्फ कृष्ण को ही अपना सबकुछ माना। कृष्ण के प्रति अपनी इसी निश्चल भक्ति और प्रेम को लेकर मीरा ने कई कविताओं की रचना की। विश्व कविता दिवस पर जानते हैं मीराबाई की ऐसी पांच प्रसिद्ध कविताएं, जिसका एक-एक शब्द श्रीकृष्ण की भक्ति और प्रेम से ओत-प्रोत है।
मीराबाई की प्रेम कविताएं (Mirabai Poetry)
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोड़े छोड़े सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई।।
पायो जी मैंने
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नांव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥
हरि तुम हरो जन की भीर
हरि तुम हरो जन की भीर।द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,चरण-कंवल पर सीर॥
कृष्ण मंदिरमों मिराबाई नाचे
कृष्ण मंदिर में मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
पाव में घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥टेक॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टब की॥२॥
बीख कटोरा राजाजी ने भेजो तो संटसंग मीरा हट की।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृत की॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं।।
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं।।
तन मन सुरति संजो सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं।।
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोडी छोडी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ।।
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये।।३।।
सुण लीजो बिनती मोरी
सुण लीजो बिनती मोरी,मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भव सागरसे तारे॥
मैं सबका तो नाम न जानूं, कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया, भक्त कबिरा का बैल चराया॥
सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाईको, तुम कीन्हा अपनाई॥
करमा की खिचड़ी खाई, तुम गणि का पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रंग राती, या जानत सब दुनियाई॥