आज से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। मां दुर्गा की आराधना और फल पाने के लिए इन दिनों को सबसे अच्छा माना जाता हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती हैं। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। मन विचलित होता हो और आत्मबल में कमी हो तो मां शैलपुत्री की आराधना करें। चलिए जानते है नवरात्रि के पहले दिन आराधना कैसे करें।
मां शैलपुत्री का स्तवन मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां की प्रिय वस्तुएं

मां शैलपुत्री को लाल रंग बहुत प्रिय है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल और मीठा पान भेंठ करें।
ऐसे करें कलश स्थापित

-कलश ईशान कोण या पूरब-उत्तर दिशा में स्थापित करें।
-कलश पर स्वास्तिक बनाएं। मौली बांधें।
-कलश पर अष्टभुजी देवी स्वरुप 8 आम के पत्ते लगाएं।
-रोली, चावल, सुपारी, लौंग, सिक्का अर्पित करते हुए कलश स्थापिक करें।
अखंड ज्योति के नियम
-घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जला सकते हैं।
-घी का दीपक दाहिनी तरफ और तेल का दीपक बाएं तरफ रखें।
-दीपक में एक लौंग का जोड़ा जरुर अर्पित करें।
-अखंड ज्योति कपूर और लौंग से आरती करें।
ऐसे हुआ मां शैलपुत्री का जन्म

पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में पैदा हुई थीं तब इनका नाम सती था। सती माता ने भगवान शिव से शादी की थी, लेकिन उनकी यह शादी प्रजापति दक्ष को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। एक बार माता सती के घर में यज्ञ था, उस यज्ञ में जब माता सती पहुंची तो देखा कि वहां पर शिव जी का तिरस्कार हो रहा है।

माता सती अपने पति का तिरस्कार सहन ना कर पाई और यज्ञ की अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए। माता सती के प्राण त्यागने के बाद अगले जन्म में मां सती ने शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ था।