UP News: उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए व्यवसायों को बड़ी राहत प्रदान की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट द्वारा "उत्तर प्रदेश व्यापार सुगमता (प्रावधानों में संशोधन) अध्यादेश, 2025" को मंजूरी दे दी गई।
इस अध्यादेश के तहत, राज्य में लागू 13 प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक अधिनियमों के लगभग 99 प्रतिशत आपराधिक प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया है। अधिकांश मामलों में, उद्यमियों और व्यापारियों को जेल भेजने के बजाय, आर्थिक दंड और प्रशासनिक कार्रवाई लागू की जाएगी।
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक
राज्य सरकार के इस कदम का उद्देश्य उद्योग और व्यापार क्षेत्र को "व्यापार सुगमता" की दिशा में नई गति प्रदान करना है। सरकार का कहना है कि अब तक, व्यापारियों को मामूली तकनीकी उल्लंघन या देरी के लिए भी जेल की सजा का सामना करना पड़ता था, जिससे कारोबारी माहौल प्रभावित होता था। अब, इन मामलों में जुर्माना, चेतावनी या सुधारात्मक कार्रवाई का प्रावधान लागू किया जाएगा।
इस अध्यादेश के अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किया गया है: 1. कारखाना अधिनियम, 1948, 2. दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1962, 3. मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961, 4. बॉयलर अधिनियम, 1923, 5. ठेका श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम, 1970, 6. अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 7. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 8. श्रम कल्याण अधिनियम, 9. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 10. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 11. मजदूरी भुगतान अधिनियम, 12. मातृत्व लाभ अधिनियम, और 13. भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम। इनमें से अधिकांश में संशोधन करके मामूली उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है और केवल आर्थिक दंड लगाया गया है।
मुख्यमंत्री योगी ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह अध्यादेश राज्य को "निवेश के लिए सबसे उपयुक्त गंतव्य" बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उनके अनुसार, "व्यापारी और उद्यमी अब अनावश्यक मुकदमेबाजी और जेल की सज़ा से मुक्त हो जाएँगे। सरकार पारदर्शी प्रशासन और सरल व्यावसायिक व्यवस्था सुनिश्चित कर रही है।" इस अध्यादेश के बाद, तकनीकी त्रुटियों के लिए उद्यमियों को जेल की सज़ा नहीं, बल्कि जुर्माना या चेतावनी मिलेगी। अब सभी पंजीकरण और निरीक्षण प्रक्रियाएँ डिजिटल रूप से संचालित होंगी। विभागीय निरीक्षणों में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक तृतीय-पक्ष ऑडिट प्रणाली लागू की जाएगी। गंभीर अपराधों या जानमाल के नुकसान से जुड़े मामलों में आपराधिक प्रावधान लागू रहेंगे।