जन्माष्टमी पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में आज से लगभग 5200 साल पूर्व महाराज कंस की जेल में हुआ था। राजा कंस रिश्ते में भगवान श्रीकृष्ण का मामा था और वो मथुरा पर राज किया करता था। राजा कंस की एक बहन थी, जिसका नाम देवकी था। वह अपनी बहन से बहुत प्यार किया करता था। उसने अपनी बहन देवकी का विवाह अपने मित्र वसुदेव जी के साथ बड़े ही धूमधाम से किया।
जिस समय वसुदेव और देवकी का विवाह संपन्न हुआ, उसी दौरान कंस ने एक आकाशवाणी सुनी कि, देवकी की आठवीं संतान के द्वारा कंस का वध होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस बहुत डर गया और उसने अपनी बहन देवकी और वसुदेव को जेल में डाल दिया। जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण पैदा हुए उस दिन जेल में बहुत ही प्रकाश था और ऐसा माना जाता है कि वहां भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने वसुदेव और देवकी से कहा कि, मैं स्वयं तुम्हारे आठवें पुत्र के रुप में जन्म ले रहा हूं। अब तुम मुझे शीघ्र ही गोकुल में अपने मित्र नन्द के घर छोड़ आओं।
वसुदेव जी भगवान श्रीकृष्ण को लेकर गोकुल की ओर चले गए। रास्ते में यमुना नदी ने भी उन्हें रास्ता दे दिया और वसुदेव जी नवजात श्रीकृष्ण को अपने मित्र नन्द और यशोदा के घर गोकुल छोड़ आए। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण का जन्म तो जेल में हुआ और उनका पालन पोषण नन्द-यशोदा के घर गोकुल में हुआ। इसीलिए श्रीकृष्ण के सभी भक्त भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं और व्रत रखते हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को अगले दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है। परन्तु कुछ लोग इस व्रत को महाव्रत मानते हैं और इसे निर्जला रखते हैं। निर्जला व्रत में पूरे दिन ना कुछ खाने और ना कुछ पीने का नियम है। मध्य रात्रि श्रीकृष्ण के जन्म के बाद यह व्रत खोला जाता है। परन्तु कुछ लोग इस दिन फलाहार व्रत रखते हैं। फलाहार व्रत निर्जला व्रत की तरह कठिन नहीं होता है।