आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में 5 सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की। 5 जजों में से तीन-दो के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन को वैध ठहराया। यह संशोधन जनवरी, 2019 में हुआ था। इस संशोधन को चुनौती दी गई थी, जिसे अगस्त, 2020 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा गया था। 3 जजों ने इसे वैध माना है जिसमें जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, और जस्टिस एसबी पार्डीवाला शामिल है। तीनों जजों ने कहा कि इस संशोधन से संविधान का मूल ढांचा प्रभावित नहीं होता है। जस्टिस एस रविंद्र भट और चीफ जस्टिस यूयू ललित ने संशोधन को वैध नहीं मानते हुए फैसला अपना फैसला सुनाया।
संविधान के 103वें संशोधन को चुनौती देते हुए कहा गया कि इससे संविधान का मूल ढांचा प्रभावित होता है। केशवानंद भारती (1973) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे की बात कही थी। इसमें कहा गया था कि संविधान की कुछ बातों को बदला नहीं जा सकता है। संशोधन का विरोध में कहा गया था कि संविधान में सामाजिक स्तर पर पीछे रह गए वर्गों को विशेष सुरक्षा, अधिकार देने की बात कही गई है, और 103वां संशोधन आर्थिक आधार पर विशेष सुरक्षा का प्रवधान करता है।
103वें संशोधन के तहत संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और 16(6) को जोड़ा गया था। इसके तहत सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। आसन शब्दों में समझे तो इस संशोधन से कथित अगड़ी जातियों या सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
किन क्षेत्रों में दिया जाएगा आरक्षण का लाभ
केंद्र सरकार की नौकरियों में और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में यह आरक्षण मिलता है। इस संशोधन के तहत राज्यों को भी आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने का अधिकार दिया गया है।
इस संविधान संशोधन के तहत ऐसे लोगों को आरक्षण दिया जाएगा जो एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण से बाहर हो और उसके परिवार की आय सालाना आठ लाख रुपये से कम हो, वह इस आरक्षण का लाभ ले सकते है।