1 श्रावण मास में निकाली गई कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है। कावड़िये अपने अपने कंधे पर गंगाजल से भरा कांवड़ लेकर शिव मंदिर की ओर जाते हैं और शिवरात्रि वाले दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
2 कांवड़ में गंगाजल भरा जाता है जो केवल भगवान शिव पर ही चढ़ना चाहिए। यदि कावड़िये सिर पर कांवड़ रखेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि वह गंगाजल कांवड़िया के सिर पर टपकेगा, जो की गलत होगा क्योंकि शास्त्रों के अनुसार उस गंगाजल से सिर्फ शिव जी का जलाभिषेक किया जाता है।
3 शिव के भक्त बांस की लकड़ी पर दोनों ओर की टोकरियों में गंगाजल भरकर पैदल यात्रा करते हैं और रास्ते भर बम बम भोले का जयकारा लगाते हैं।
4 कांवड़ यात्रा के समय मन, कर्म और वचन शुद्ध होना चाहिए, शराब, पान, गुटखा, तंबाकू, सिगरेट के सेवन से दूर रहना होता हैं।
5 एक बार कांवड़ उठाने के बाद उसे रास्ते में कहीं भी जमीन पर नहीं रखा जाता है, ऐसा करने पर कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है, ऐसे में कांवड़िए को फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है।
6 कांवड़ यात्रा के समय कांवड़ियों से चमड़ा स्पर्श नहीं होना चाहिए और न ही कांवड़ को किसी के ऊपर से ले जाना चाहिए
7 शौच आदि करने के बाद स्नान के बाद ही कांवड़ को दोबारा उठाया जाता है। बिना स्नान के कांवड़ को स्पर्श करना शुभ नहीं माना जाता।
8 इस दौरान कावड़ यात्रा कर रहे व्यक्ति के परिवार के लोग भी सभी नियमों का पालन करते हैं।