हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में घर बनाने की नई शैली ने गौरैया का घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। राज्य में नए वास्तुशिल्प से बने घरों की छत के नीचे पहले गौरैया के घोंसले हुआ करते थे, लेकिन अब गौरैया घोंसले नहीं बन रहे हैं। इतना ही नहीं जहां पुराने पेड़ नहीं हैं, वहां भी ये अब नजर नहीं आती हैं। हालांकि, यह राज्य में पुरानी शैली के घरों के इर्द-गिर्द आज भी फुदकती रहती हैं। इसकी यहां ज्यादातर दो प्रजातियां दिखाई देती हैं। हिमाचल बर्ड्स संस्था (Himachal Birds Society) के अध्यक्ष सोमेश गोयल शिमला में बर्ड वाचर के रूप में काफी मशहूर हैं। वह हिमाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर हुए हैं।
उन्होंने ही एलेक्जेंडर एड्वर्ड्स जोंस की लिखी एक पुस्तक ‘कॉमन बर्ड्स ऑफ शिमला’ को दोबारा प्रकाशित और संपादित किया है। वह ‘हिमाचल बर्ड्स’ नाम से आई एक कॉफी टेबल बुक के भी लेखक हैं। गोयल के अनुसार हिमाचल प्रदेश में घरों के नए आर्किटेक्चर ने गौरैया को उनके घर से बेघर कर दिया है। पहले घरों की छत के नीचे खुली जगह हुआ करती थी, जहां गौरैया अपने घोंसले बिना किसी डर के बनाती थी। पहले की तरह के पेड़ भी अब कम होते जा रहे हैं जो गौरैया के लिए अनुकूल रहते हैं। नुकीली पत्तियों वाले पेड़ों पर गौरैया अपना घोंसले नहीं बना पाती।
खूब देखी जा रही गौरैया
बेशक, हिमाचल प्रदेश में घरों के आसपास गौरैया के लिए पहले की तरह एक अनुकूल वातावरण नहीं रहा है। लेकिन इसके बावजूद गौरैया को यहां खाने के लिए कीड़े-मकौड़े, अनाज आदि मिलता है, वहां यहां खूब दिखाई देती है। सोमेश गोयल के मुताबिक हिमाचल प्रदेश बहुत सौभाग्यशाली है कि यहां गौरैया नजर आती हैं। गौरैया का दिखना एक स्वस्थ वातावरण का सूचक होता है। प्रदेश में तो विदेशीर परिंदे भी अनुकूल माहौल पाते हैं। शिमला सहित प्रदेश भर में बर्ड्स वाचर की संख्या काफी बढ़ी है।
हिमाचल में दो तरह की गौरैया
हिमाचल प्रदेश में दो तरह की गौरैया अक्सर दिखाई देती है। एक सामान्य गौरैया होती है। सामान्य गौरैया में जो पुरुष होता है, उसकी पहचान उनके गले में एक काला पैच से होती है। जो दूसरी गौरैया है, उसे रसेट स्पैरो (russet sparrow) कहते हैं। ये धूसर रंग की होती है। यानी, लोहे के जंग जैसा होता है।