इस वर्ष 15 जनवरी से पोंगल पर्व की शुरुआत हो रही है। इसका समापन 18 जनवरी दिन होगा। सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तर भारत में मकर संक्रांति या खिचड़ी मनाई भी जाती है। वहीं दक्षिण भारत में इस दिन पोंगल का पर्व मनाया जाता है। पोंगल दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। ये मुख्य रूप से दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में मनाया जाता है। मान्यता यह भी है कि दक्षिण भारत में फसल काटने के बाद लोग अपनी प्रसन्नता और खुशी को प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार बड़े ही उल्लास से मनाते हैं। इस दौरान लोग समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, सूर्य, इंद्रदेव और खेतिहर पशुओं की पूजा अर्चना करते हैं। ये पर्व पूरे 4 दिनों तक चलता है। प्रत्येक दिन का अपना-अलग महत्व होता है।
आइए जानते हैं इन 4 दिनों का महत्व और परंपरा
पोंगल पर्व के पहले दिन इंद्र देव की पूजा और अर्चना की जाती है। इस पूजा को भोगी पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन वर्षा के लिए इंद्र देव का शुक्रिया प्रकट करते हुए जीवन सुख और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। साथ ही दिन लोग अपने पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हुए झूमते और नाचते हैं।
दूसरे दिन को सूर्य पोंगल के रूप मे मनाया जाता है। इस त्योहार के दूसरे दिन सूर्य देव की विधिविधान से पूजा की जाती है। इस दिन सूर्य के उत्तरायण होने के बाद सूर्य देव का शुक्रिया प्रकट किया जाता है। साथ ही इस दिन एक खास प्रकार की खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल खीर के नाम से भी जाना जाता है।
तीसरे दिन पशुओं की पूजा की जाती है। यह मट्टू पोंगल के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसमें लोग बैल की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। अपने पशुओं का शुक्रिया और आबार प्रकट करने के लिए इस दिन गाय और बैलों को सुंदर तरीके से सजाया जाता है और उनकी पूजा भी की जाती है। साथ ही इस दिन बैलों की दौड़ (Race) का भी आयोजन किया जाता है, जिसे जलीकट्टू के नाम से भी जाना जाता है।
चौथा दिन पोंगल पर्व का अंतिम दिन होता है। चौथे दिन को कन्या पोंगल मनाया जाता है। इस दिन घरों को सुंदर बनाने के लिए फूलों और पत्तों से सजाया जाता है। घर के आंगन में रंगोली बनाई जाती है। इसके बाद कन्या पूजन कर लोग एक-दूसरे को पोंगल की शुभकामनाएं देते हैं और जीवन में एक-दूसरे के लिए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।