1 हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने में आने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि वेदों के रचयिता वेद व्यास जी का जन्म इसी तिथि को हुआ था। इसी वजह से इस तिथि को वेद व्यास जयंती के रुप में मनाते है।
2 गुरु पूर्णिमा के संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश स्वरूप कलावतार हैं। इनका जन्म एक द्वीप के अंदर हुआ था। उनके पिता का नाम महर्षि पराशर तथा माता का नाम सत्यवती था।
3 महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों की रचना की थी। इस कारण इन्हें प्रथम गुरु का दर्जा दिया जाता है। वेदव्यास एक अलौकिक शक्ति सम्नन महापुरुष थे। कलयुग के पहले उन्होंने ही चारों वेदों को लिपिबद्ध किया था। वेदों का विस्तार करने के कारण वेदव्यास तथा बदरीवन में निवास करने के कारण बादरायण भी कहे जाते हैं।
4 व्यास जी की गणना भगवान के 24 अवतारों में की जाती है। व्यास स्मृति के नाम से इनके द्वारा बनाया गया एक स्मृति ग्रन्थ भी हैं। इनका पूरा नाम कृष्ण- द्वैपायन बादरायण वेदव्यास है।
5 कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया था और इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे।
6 गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं को प्रणाम करना चाहिए, उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और हो सके तो उन्हें कुछ भेंट करना चाहिए। आज ऐसा करने से आपके ऊपर गुरु कृपा हमेशा बनी रहेगी।
7 कहते हैं गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीने अध्ययन के लिये बड़े ही उपयुक्त माने जाते हैं । साधु-संत भी इस दौरान एक स्थान पर रहकर ध्यान लगाते हैं ।