होम
देश
दुनिया
राज्य
खेल
बिजनेस
मनोरंजन
सेहत
नॉलेज
फैशन/लाइफ स्टाइल
अध्यात्म

 

जानिए छठ पूजा का महत्व, 4 दिन तक चलने वाले इस पर्व पर जानिए क्या क्या होता है

जानिए छठ पूजा का महत्व, 4 दिन तक चलने वाले इस पर्व पर जानिए क्या क्या होता है

 

छठ पूजा का पर्व वर्ष में दो बार पूर्ण आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है। पहला छठ पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है और दूसरा कार्तिक माह में। ये पर्व सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है, जिसे पुरुष और स्त्री बहुत ही सहजता से पूरा करते है।

छठ पूजा का आयोजन पूरे भारत वर्ष में बहुत ही बड़े पैमाने पर किया जाता है। ज्यादातर उत्तर भारत के लोग इस पर्व को मनाते है। भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्ग दिया जाता है। कई लोग इस पर्व को हठयोग भी कहते है। ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बिमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है और परिवार के सदस्यों को लम्बी आयु प्रदान करती है। चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के दौरान शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है।

नहाय खाय के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है, इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है और शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरम्भ करते है।

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है, इस दिन खरना की विधि की जाती है। खरना का असली मतलब पूरे दिन का उपवास होता है| इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है। शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।

तीसरे दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है। इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य को अर्ग दिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के अर्ग के बाद छठी माता के गीत गाये जाते है और व्रत कथाये सुनी जाती है।

छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है। आज के दिन सूर्य निकलने से पहले ही व्रती व्यक्ति को घाट पर पहुचना होता है और उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है। अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है। इस पावन पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोलते है।


संबंधित समाचार