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जानें निर्माण और सृजन के देवता, भगवान विश्वकर्मा की जयंती की पूजा का विधि-विधान

जानें निर्माण और सृजन के देवता, भगवान विश्वकर्मा की जयंती की पूजा का विधि-विधान

 

आज पूरे भारत में भगवान विश्‍वकर्मा की जयंती मनाई जाएगी। भगवान विश्‍वकर्मा ने देवताओं के लिए कई भव्‍य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया था इसलिए उन्हें निर्माण का देवता माना जाता है।

 

विष्णु पुराण में भी भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना गया है, उन्हें दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर भी कहा जाता है। ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रुप में जन्म लिया था।

 

शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार आज के दिन दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक ही पूजा करना ज्यादा शुभ है, हालांकि आप अपनी सुविधानुसार दिन में कभी भी पूजा कर सकते हैं। इस दिन भगवान विश्वकर्मा और मशीनों की पूजा करने से काम में और तरक्की मिलती है।

 

पूजा की विधि

पूजा करने के लिए अपनी मशीन को अच्छे से साफ कर घर के मंदिर में जाकर विष्णु भगवान और विश्वकर्मा भगवान की पूजा करें और फूल रखकर भगवान और मशीन पर चढ़ाएं। इसके बाद अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि ले आएं और कलश को स्थापित करें और फिर विधि-विधान से क्रमानुसार पूजा करें। 

 

विश्वकर्मा जी की आरती

 

ॐ जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा॥ ॐ जय…

 

आदि सृष्टि में विधि को श्रुति उपदेश दिया।

जीव मात्रा का जग में, ज्ञान विकास किया॥ ॐ जय…

 

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥ ॐ जय…

 

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुःख कीना॥ ॐ जय…

 

जब रथकार दंपति, तुम्हरी टेर करी।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत हरी सगरी॥ ॐ जय…

 

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे॥ ॐ जय…

 

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे॥ ॐ जय…

 

“श्री विश्वकर्मा जी” की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥ ॐ जय…


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