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मई महीने के हर मंगलवार को बड़ा मंगल क्यों कहा जाता है, जानें इसके पीछे की कहानी और महत्त्व

मई महीने के हर मंगलवार को बड़ा मंगल क्यों कहा जाता है, जानें इसके पीछे की कहानी और महत्त्व

 

Budhwa Mangal: हिंदू पंचाग के अनुसार मई का महीना ज्येष्ठ महीना होता है। ज्येष्ठ महीने में आने वाले सभी मंगलवार को बड़ा मंगल यानि की बुढ़वा मंगल कहा जाता है। मई महीने  के सभी मंगलवारों का बड़ा महत्‍व होता है। मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है,जगह-जगह भंडारे होते हैं। मान्यताओं के अनुसार बुढ़वा मंगल के दिन बजरंगबली के वृद्ध स्वरुप की पूजा की जाती है। उनके इस रूप के पूजन से जीवन के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। चलिए जानते है बड़ा मंगल की कहानी क्या है...

ये है बड़ा मंगल की कहानी 

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी भगवान राम से पहली बार ज्येष्ठ महीने के मंगलवार के दिन ही मिले थे। इसलिए इस महीने के सभी मंगलवार के दिनों को बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल के नाम से जाना जाता है। मंगलवार के दिन मंदिरों में कीर्तन -भजन किए जाते हैं। भक्तों के लिए भंडारे होते हैं और जगह-जगह पर प्याऊ लगवाए जाते हैं। दरअसल बड़ा मंगल उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और ऐसी मान्यता है कि इसकी शुरुआत भी यहीं से हुई थी। 

इस महीने बड़ा मंगल की तारीखें
ज्येष्ठ का पहला बड़ा मंगल -09 मई 2023
ज्येष्ठ का दूसरा बड़ा मंगल -16 मई 2023
ज्येष्ठ का तीसरा बड़ा मंगल – 23 मई 2023
ज्येष्ठ का चौथा बड़ा मंगल – 30 मई 2023

बड़ा मंगल पर ऐसे करें पूजा

बजरंगबली को अष्ट सिद्धि नौ निधि का दाता कहा जाता है, इसलिए उनकी कृपा पाने के लिए भक्त बड़ा मंगल पर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन बजरंगबली को सिंदूर, चोला और गुलाब का फूल केवड़े के इत्र के साथ अर्पित करना चाहिए। साथ ही इन मंत्रों का जाप भी करें- ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमित विक्रमाय। प्रकटपराक्रमाय महाबलाय सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा। इस दिन दान-पुण्य करने भी किया जाता है ताकि बजरंगबली की कृपा आप पर बनी रहें, जो लोग आर्थिक, मानसिक और शारीरिक पीड़ा से परेशान रहते है। वह इस दिन बजरंगबली का व्रत भी कर सकते हैं। 

लखनऊ का है खास त्योहार 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बड़ा मंगल लखनऊ का एक अनोखा त्योहार है क्योंकि यह किसी अन्य राज्य या शहर में नहीं मनाया जाता है। यह पर्व लखनऊ की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक माना जाता है और कहा जाता है कि इसकी शुरुआत लगभग 400 साल पहले मुगल शासन के दौरान हुई थी। इसलिए इस त्योहार को लखनऊ में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

 


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