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सत्ता के पांच महीने बाद तक भी...क्या सच में हिमाचल क्षेत्रीय संतुलन साधने में असफल है कांग्रेस ?

सत्ता के पांच महीने बाद तक भी...क्या सच में हिमाचल क्षेत्रीय संतुलन साधने में असफल है कांग्रेस ?

 

Himachal Politics:देशभर में इन दिनों कांग्रेस की सियासत बदलती हुई नजर आ रही है, हाल में कर्नाटक और इससे पहले हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस ने जीत हासिल कर बड़ी सफलता हासिल की है। जिसके बाद हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक आदर्श राज्य के तौर पर बनकर उभरा है। लेकिन, आज भी  कांग्रेस हिमाचल की क्षेत्रीय समीकरण साधने में नाकाम नजर आ रही है। पता हो कि हिमाचल का सबसे बड़ा जिला होने के बावजूद भी कांगड़ा को नाम मात्र का स्थान मिला और अब नगर निगम शिमला में भी क्षेत्रीय संतुलन की भारी कमी नजर आ रही है।

कांगड़ा जिले से सिर्फ एक नेता मंत्रिमंडल में शामिल
बता दें कि हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 विधानसभा क्षेत्र जिला कांगड़ा में आते हैं। जिसमे में कांग्रेस की झोली में 10 सीटें हैं। यूं तो कांग्रेस को कांगड़ा में प्रचंड बहुमत मिला, लेकिन सुक्खू मंत्रिमंडल में सिर्फ कांगड़ा जिला से सिर्फ चौधरी चंद्र कुमार के रूप में एक मंत्री ही दिया गया। जबकि कांगड़ा से तीन मंत्री बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे पर मंत्रिमंडल विस्तार फिलहाल सिर्फ अटकलें ही नजर आ रही हैं।

नगर निगम शिमला में भी क्षेत्रीय असंतुलन
इसी तरह नगर निगम शिमला के मेयर और डिप्टी मेयर के चयन में भी भारी क्षेत्रीय असंतुलन नजर आया। नगर निगम शिमला तीन विधानसभा क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें शिमला शहरी के 18, कसुम्पटी के साथ 12 और शिमला ग्रामीण के 4 वॉर्ड शामिल हैं। अब जब मेयर-डिप्टी मेयर के चयन की बात आई, तो दोनों पद ही शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र की झोली में आ गिरे क्योंकि माना यह भी जा रहा है कि कसुम्पटी से कांग्रेस को पांच वार्डों में हार का सामना करना पड़ा। इस वजह से भी मेयर-डिप्टी मेयर का पद की झोली में नहीं आया और शिमला ग्रामीण के सिर्फ चार वॉर्ड ही परिधि में होने के चलते मौका नहीं मिल सका।

करीबियों के लिए सीएम का समर्पण बेलगाम 
जानकारों का कहना है कि नगर निगम शिमला में यह असंतुलन भविष्य में कार्यकर्ताओं के बीच रोष का एक बड़ा कारण बन सकता है। हालांकि दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों के विधायक अनिरुद्ध सिंह और विक्रमादित्य सिंह को सुक्खू मंत्रिमंडल में जगह मिली हुई है। इस सब के बीच राजनीतिक जानकारों ने यह भी ध्यान दिलाया कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वे अपने करीबियों को साथ लेकर चलने वाले नेता हैं। सुरेंद्र चौहान को मेयर बनाए जाने की अटकलें उन्हें टिकट दिए जाने के साथ ही शुरू हो गई थी। चुंकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने न केवल सुरेंद्र चौहान के लिए जमकर प्रचार किया बल्कि उन्हें मेयर बनाकर यह भी साबित कर दिया कि अपने करीबियों के लिए उनका समर्पण बेलगाम है।

 


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