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अयोध्या विवाद: बहस खत्म, अब फैसले का इंतजार, जानें SC में सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ

अयोध्या विवाद: बहस खत्म, अब फैसले का इंतजार, जानें SC में सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ

 

अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच में 40 दिन तक विस्तार से सभी पक्षों को सुना। यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई है। सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी।

कल सुबह करीब 10:35 पर जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच बैठी, तो यह साफ कर दिया कि आज सुनवाई हर हाल में पूरी कर ली जाएगी। मामले में अलग से अर्जी दाखिल करने वाले कुछ पक्षकारों को जिरह के लिए वक्त देने से मना करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, बहुत हो चुका, इस मामले पर अब और सुनवाई नहीं हो सकती। हम समझते हैं कि सभी पक्ष अपनी बातें कह चुके हैं। जब हम दिन की कार्यवाही खत्म करके उठेंगे, तब मामले को भी की सुनवाई भी बंद कर दी जाएगी।

इसके बाद सभी पक्षकारों ने तेजी से अपनी बात रखनी शुरू कर दी। रामलला विराजमान पक्ष के सी एस वैद्यनाथन ने मुस्लिम पक्ष की बातों का जवाब देते हुए कहा, पैगंबर मोहम्मद ने एक बार कहा था कि किसी को मस्जिद उसी जमीन पर बनानी चाहिए जिसका वह मालिक हो, मुस्लिम पक्ष अयोध्या की जमीन पर मालिकाना हक साबित नहीं कर पाया है। कुछ समय नमाज पढ़े जाने को आधार बनाकर जमीन का मालिक बनने की कोशिश कर रहा है।

इसके बाद मामले में 1950 में याचिका दाखिल करने वाले पहले याचिकाकर्ता स्वर्गीय गोपाल सिंह विशारद के लिए रंजीत कुमार, महंत धर्मदास के लिए जयदीप गुप्ता जैसे वकीलों ने अपनी बातें रखीं। अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से विकास सिंह जिरह के लिए खड़े हुए तो विवाद की स्थिति बन गई। विकास सिंह ने पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब अयोध्या रिविजिटेड का हवाला देना चाहा, मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन में इसका यह कहते हुए विरोध किया कि किताब कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है। इसके बाद विकास सिंह ने उसी किताब में छपे अयोध्या के एक नक्शे को कोर्ट में रखा।

इस नक्शे को दूसरे दस्तावेजों से मिलाते हुए सिंह विवादित जगह पर ही भगवान राम का जन्म स्थान होने की दलील देना चाहते थे। लेकिन धवन ने उन्हें सौंपी गई नक्शे की कॉपी को फाड़ दिया। उन्होंने कहा कि नक्शा उसी किताब से लिया गया है जो रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं। इसके बाद विकास सिंह ने विवादित इमारत के बाहर 1858 में अंग्रेजों के रेलिंग बना देने का जिक्र किया। उन्होंने कहा, तिरुपति के मंदिर में जब हम जाते हैं, तो एक तय सीमा से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं होती। हम एक तय दूरी से ही भगवान बालाजी की पूजा करते हैं और लौट जाते हैं। उसी तरह से हिंदू रेलिंग के बाहर खड़े होकर जन्म स्थान की पूजा किया करते थे। इमारत के बनने या बाद में रेलिंग के बन जाने से उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा था।

निर्मोही अखाड़े के तरफ से वकील सुशील कुमार जैन ने एक बार फिर वहां अखाड़े के सेवादार होने के दावे को दोहराया। उन्होंने यह भी कहा कि विवादित इमारत के बन जाने के बाद भी निर्मोही अखाड़ा लगातार वहां पूजा कर रहा था। वह जगह निर्मोही अखाड़े को ही दी जानी चाहिए। सुनवाई के अंत में मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने एक बार कहा कि एक बार बनी मस्ज़िद किसी को नहीं सौंपी जा सकती। उन्होंने ढांचा गिराए जाने से पहले की स्थिति बहाल किए जाने की भी मांग की। मामले की सुनवाई करने वाली बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के तहत इससे पहले फैसला आने तय है।

 

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