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हिमाचल में डॉक्टरों का पलायन रोकने के लिए सरकार का बड़ा फैसला, भरना होगा 40 लाख का बॉन्ड

हिमाचल में डॉक्टरों का पलायन रोकने के लिए सरकार का बड़ा फैसला, भरना होगा 40 लाख का बॉन्ड

 

हिमाचल से पीजी (MD-MS) करने के बाद डॉक्टरों का पलायन रोकने के लिए राज्य सरकार ने वीरवार को बड़ा निर्णय लिया है। पीजी में एडमिशन लेने वाले डॉक्टरों को अपनी एमबीबीएस की डिग्री स्वास्थ्य निदेशक के पास जमा करवानी होगी। डिग्री जमा करवाने के साथ 40 लाख रुपए का बॉन्ड भी भरना होगा। पीजी डिग्री पूरी होने के बाद डॉक्टरों को पांच साल हिमाचल में नौकरी करनी होगी। 5 साल का सेवाकाल पूरा होने के बाद विभाग डॉक्टरों को डिग्री वापस करेगा। बॉन्ड का उल्लंघन करने पर डॉक्टरों की एमबीबीएस की डिग्री विभाग के पास रहेगी।

विभाग एमसीआई से डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश भी कर सकता है। स्वास्थ्य विभाग पीजी डॉक्टरों की लिस्ट हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी को भी भेजेगा ताकि कोई भी डॉक्टर डुप्लीकेट डिग्री के लिए आवेदन न कर सके। राज्य सरकार ने इसको लेकर अधिसूचना जारी कर दी है। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को बाहरी राज्यों में जाने से रोकने के लिए सरकार ने कानून में संशोधन किया है। प्रदेश में 300 डॉक्टरों की कमी है।

यदि कोई डॉक्टर राज्य कोटे से पीजीआई और एम्स से पीजी कर रहा है तो उस पर भी यह नियम लागू होगा। प्रदेश के जनजातीय और हार्ड एरिया में नौकरी करने पर इनसेंटिव भी मिलेगा। जीडीओ कोटे से पीजी करने वालों को पीजी इनसेंटिव भी मिलेगा। सीधे प्रवेश लेकर पीजी करने वाले डॉक्टरों को इनसेंटिव सरकार देगी। कोर्स की अवधि के दौरान सरकार ने अलग-अलग क्षेत्रों में तैनाती के अंक भी तय किए हैं। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला और राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में पीजी की 173 सीटें हैं।

नई पीजी पॉलिसी के तहत डॉक्टरों को राज्य में दो से पांच साल नौकरी करनी होगी। यह अनिवार्य है। डायरेक्ट पीजी करने वालों को दो साल की अनिवार्य सेवा, जीडीओ कोटे और राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों से पीजी करने वालों को 5 साल अनिवार्य नाैकरी करनी होगी। यदि तय शर्तों के मुताबिक पीजी डॉक्टर हिमाचल में सेवाएं नहीं देते तो उनसे 40 लाख रुपए बॉन्ड मनी के रूप में रिकवर किए जाएंगे।


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