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छावला सामूहिक दुष्कर्म केस में तीनों आरोपियों के बरी होने पर पीड़िता का परिवार चिंतित

छावला सामूहिक दुष्कर्म केस में तीनों आरोपियों के बरी होने पर पीड़िता का परिवार चिंतित

 

2012 में हुए छावला हत्याकांड और गैंगरेप के आरोपियों को  सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने किरन नेगी के परिजनों को और दुखी कर दिया है। 9 फरवरी 2012 के इस गैंगरेप व हत्याकांड को लेकर परिजनों ने काफी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। पहले निचली अदालतों ने आरोपियों के गुनाह को देखते हुए इस हत्याकांड के लिए फांसी की सजा सुनाई थी। 

उसके बाद ये चर्चित मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंचा । परिजनों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट मेंकानूनी लड़ाई लड़ने करीब 8 साल लग गए। सोमवार को इस मामले में फैसला आया। लेकिन जैसे ही कोर्ट का आदेश आया किरन के परिजनों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।

किरन की मां महेश्वरी देवी ने कहा, कि 'कोर्ट का फैसला सुनकर यकीन नहीं हो रहा है।उन्होनें कहा आखिर ऐसे कैसे हो सकता है कि सर्वोच्च अदालत ने कोई सजा ही नहीं सुनाई हो और तीनों आरोपी बरी हो गए।' महेश्वरी देवी आगे कहती है कि 'आरोपियों को उम्र कैद या आजीवन कारावास की सजा भी हो जाती तो कम से कम उनका दिल तो मान जाता। लेकिन कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।'

किरन के पिता कुंवर सिंह ने  फैसले पर अपना असंतोष जाहिर किया। यह परिवार मूल रूप से पौड़ी जिले के ब्लाक नैनीडांडा के गांव रणजीत मोक्षण के रहने वाले है।

मां महेश्वरी देवी के साथ ही अन्य परिजनों को फैसले से धक्का लगा है। कहते है कि सर्वोच्च अदालत के आरोपियों को बरी कर देने से उनकी उम्मीदों को ही खत्म कर दिया है।

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