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बेहतरीन नीडल वर्क से तैयार होते हैं ये Outfit, वॉर्डरोब में जरुर करें शामिल

बेहतरीन नीडल वर्क से तैयार होते हैं ये Outfit, वॉर्डरोब में जरुर करें शामिल

 

बहुत से लोगों को जरदोजी एंब्रॉयडरी और जरी वाले कपड़े बहुत पसंद होते हैं। ये बहुत खूबसूरत भी लगते हैं। इन दोनों कढ़ाई वाले कपड़ों को देखकर कभी भी किसी के मुंह से ना नहीं निकलता है। लेकिन क्या आपको इन दोनों कढ़ाई के बीच का अंतर पता है? अगर नहीं तो चलिए आज इस आर्टिकल में आपको इन दोनों के बीच का अंतर बताने जा रहे है।


जरी एंब्रॉयडरी

- जरी सिलाई एक पारंपरिक शिल्पकला है जिसे पीढ़ियों से बनाया जा रहा है। जरी के काम में विस्तृत पैटर्न बनाने के लिए मैटेलिक धागे और बहुत सी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जरी कढ़ाई में आमतौर पर सोने और चांदी के धागों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि कपड़े पर चमक बढ़ाई जा सकें। 'सोने' के लिए इस्तेमाल होने वाला जरी एक फारसी शब्द है। 

जरदोजी एंब्रॉयडरी

जरदोजी एंब्रॉयडरी आज से नहीं बल्कि दशकों से भारत का हिस्सा है और यह देश के पड़ोसी मुल्क के साथ भी एक विरासत साझा करती है। इसे ब्राइडल गाउन से लेकर डेकोरेटिव पिलो बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक इरानियन कार्पेट था जिसने भारत में मुगल एरा में प्रवेश किया है। इसके लैविश डिजाइन और पर्शियन ओरिजन के कारण यह एक स्टेटस सिंबल बनी।

-जरदोजी में आमतौर पर  गोल्ड और सिल्वर का काम होता है। जिससे कपड़ा और शाही और सुंदर लगता है। इसमें काफी इंट्रिकेट पैटर्न्स यानि बारिक और जटिल पैटर्न्स को सुई और धागों से तैयार किया जाता है। इसलिए जरदोजी वर्क को एक बेहतरीन नीडलवर्क तकनीकों में से एक माना जाता है।

जरदोजी एंब्रॉयडरी इतिहास से वर्तमान तक...

-  जरदोजी की कला भारत में 12वीं शताब्दी में दिल्ली में हुकूमत करने वाले तुर्की सुल्तानों द्वारा लाई गई थी।
- मुगल काल में ईरान के कारिगर शाही परिवार के सदस्यों के लिए जरी-जरदोजी कढ़ाई वाले महंगे और खूबसूरत कपड़े तैयार करते थे। 
- इसे जादुई कढ़ाई भी कहा जाता है। 
- भारत में सबसे पहले यह कला दिल्‍ली और फिर लखनऊ में आई। मगर जैसे-जैसे हुकूमत बदली वैसे-वैसे जरदोजी कढ़ाई में बदलाव भी देखने को मिलता गया।
- भारत के आजाद होने के बाद इस कला को एक बार फिर से नई जिंदगी मिली और केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि फर्रुखाबाद , आगरा हरदोई और रायबरेली तक इस कला ने अपने पैर पसार लिए हैं।
- जरदोजी में आज के समय कम जर तो नहीं रहा मगर इसकी जगह चमकीले धागे, मोती, सेमी प्रेशियस स्‍टोंस आदि आ गए हैं। जरदोजी कला में करदाना मोती, कोरा नक्काशी आदि कई तरह के काम किए जाते हैं। पहले यह केवल रेश्‍मी कपड़ों पर किया जाता था, मगर अब आप इसे सिल्‍क और रॉ सिल्‍क के साथ-साथ वेल्‍वेट, शिफॉन आदि कपड़ो पर भी देख जा सकता हैं।
- आपको बता दें कि आज भी जरदोजी का काम लखनऊ , फर्रुखाबाद और रायबरेली आदि जगहों पर किया जाता है।
- लखनऊ के चौक इलाके में आपको ढेरों दुकानें मिल जाएंगी जहां चिकनकारी और जरदोजी की कला के अलावा आपको कुछ और नजर ही नहीं आएगा। वहीं  पहले के जमाने जितना अब जरदोजी का काम महंगा भी नहीं रहा। 

 


 


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