Ice Slipping Science: शहरों में लोगों को आसानी से अपने फ्रिज में जमने वाली बर्फ़ मिल जाती है। लेकिन, गाँव के इलाकों में यह नहीं मिलती, इसलिए वे अक्सर अपना पानी ठंडा करने के लिए बर्फ़ खरीदते हैं। बच्चे भी बर्फ़ से बहुत खेलते हैं। वे बार-बार उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं, और वह बार-बार फिसल जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? बर्फ़ पकड़ते ही क्यों फिसल जाती है? इसके पीछे साइंस है या कुछ और? आइए बताते हैं।
लंबे समय तक चलने वाली रिसर्च
दुनिया भर के साइंटिस्ट लगातार कई चीज़ों पर रिसर्च कर रहे हैं। साइंटिस्ट लंबे समय से बर्फ़ पर स्टडी कर रहे हैं। फ़्रीज़िंग पानी का जमना है। जब पानी का टेम्परेचर बहुत कम हो जाता है, तो वह जम जाता है। जब लोग आइसक्रीम और पानी को फ्रिज में रखते हैं, तो उससे जमी हुई बर्फ़ को आइस क्यूब्स कहते हैं। बर्फ की बाहरी सतह पर पानी की एक परत जम जाती है, जो ज़ीरो डिग्री से नीचे के तापमान पर दिखाई देती है। बर्फ पिघलने की प्रक्रिया को पैरी मेल्टिंग कहते हैं। इसका मतलब है कि बर्फ अंदर से नहीं पिघलती, बल्कि पहले बाहर से पिघलना शुरू होती है। 1850 के दशक में, ब्रिटिश साइंटिस्ट माइकल फैराडे ने बर्फ के ऊपर बनी लिक्विड परत पर रिसर्च की थी।
एक नई स्टडी से पता चलता है
चीन की एक मशहूर यूनिवर्सिटी, पेकिंग यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट यिंग जियांग और उनके साथियों ने बर्फ पर एक स्टडी की, जो नेचर जर्नल में छपी। इस स्टडी के मुताबिक, जब बर्फ -150 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जमती है, तो उसकी सतह एक नहीं, बल्कि दो तरह की बर्फ से बनी होती है। इस स्टडी में साइंटिस्ट्स ने बर्फ की सतह की जांच करने के लिए एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया।
इसी वजह से बर्फ फिसलन भरी हो जाती है
साइंटिस्ट्स ने पाया है कि बर्फ में कई तरह के स्ट्रक्चर होते हैं जो उसकी फ्लूडिटी को बढ़ाते हैं। इसका सबसे ज़्यादा असर बर्फ की ऊपरी परत पर पड़ता है। इसी वजह से, जब कोई बर्फ के टुकड़े उठाता है, तो वे फिसलन भरे हो जाते हैं। इंसान के शरीर का तापमान भी ज़्यादा होता है, इसलिए बर्फ़ छूते ही पिघलने लगती है।