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Pakistan Crisis:पाकिस्तान की बदहाली के लिए सेना जिम्मेदार ! जानें तबाही में कैसे की रईसी

Pakistan Crisis:पाकिस्तान की बदहाली के लिए सेना जिम्मेदार ! जानें तबाही में कैसे की रईसी

 

Pakistan Economic Crisis: पाकिस्तान में इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट के बीच लोगों के सामने खाने तक के लिए लाले पड़े हुए हैं। आसमान छूती महंगाई ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है. देश की अर्थव्यवस्था इस कदर बदहाल हो चुकी है कि सरकार के पास विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी है तो दूसरी तरफ आम लोग जरूरी चीजें भी खरीदने में सक्षम नहीं हैं। हालांकि इतनी खराब स्थिति के बाद भी पाकिस्तान की आर्मी (Pakistan Army) पर इसका कोई खास असर पड़ता दिख नहीं रहा है।  

जहां एक तरफ पाकिस्तान अपनी कंगाली को लेकर लगातार चर्चे में बना हुआ था वहीं इसकी सेना के बारे में कुछ खास सुनने में नहीं आया जैसे इन बदहाली में सेना पर कोई असर ही ना हो। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं पाकिस्तान के इस बदहाली का जिम्मेदार पाकिस्तानी सेना तो नहीं। 

अर्थव्यस्था तबाह करने में आर्मी का हाथ?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को तबाह करने में आर्मी का भी कम हाथ नहीं है. विदेशी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा 2009-2013 तक मेजर जनरल के रैंक के अधिकारी थे, तब इस्लामाबाद से एक चार्टर्ड विमान उनके दो बेटों में से एक को लंदन ले जाता था, जहां वे बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. दुनिया के प्रसिद्ध और महंगी यूनिवर्सिटी में वो पढ़ाई कर रहे थे. उनके साथ ही पाकिस्तानी आर्मी के एक अफसर का बेटा भी पढ़ता था.

कैसे विदेश में पढ़ते थे आर्मी अफसरों के बच्चे?
दुनिया की टॉप और महंगी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले पाक आर्मी के अधिकारियों के बच्चों दूसरे एशियाई छात्रों से अलग थे. स्टडी के लिए दूसरे छात्रों की तरह उन्होंने कोई लोन नहीं लिया था. उनके पास दूसरे छात्रों की तुलना में अधिक धन और पैसे थे. ऐसे में उनका जीवन स्तर काफी बेहतर था. ये वो समय था, जब पाकिस्तान कई दूसरे देशों की तरह 2007-09 के वैश्विक आर्थिक संकट से जूझ रहा था और इसकी जीडीपी 2007 में 6.8 फीसदी से गिरकर 2009 में 1.9 हो गई थी.

कैसे उठाते थे 35 लाख का खर्च?
रिपोर्ट की मानें तो इस दौरान पाकिस्तान में महंगाई 7.8 फीसदी से बढ़कर 20.8 फीसदी हो गई थी. कई लोगों के सामने दो जून की रोटी जुटा पाने में भी समस्याएं आ रही थीं. पाकिस्तानी आर्मी के कार्यरत या फिर रिटायर्ड अफसरों के बच्चे बड़ी संख्या में ब्रिटेन में स्टडी करते थे. एक विदेशी छात्र के लिए 2010 में यूके स्थ्ति बेहतर यूनिवर्सिटी में पढ़ने की फीस 25 हजार से 28 हजार पाउंड थी. उस दौरान एक पाउंड की कीमत 140 पाकिस्तानी रुपए का था. करीब 35 लाख का खर्च आता था. 

कहां से आते थे पैसे?
पाकिस्तान में उस दौर में एक डबल स्टार जनरल की औसत सैलरी 1.5 लाख रुपये भी नहीं थी. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि बच्चों की पढ़ाई को लेकर इतनी बड़ी राशि कहां से वो लाते थे. ऐसे में साफ है कि आर्मी के अधिकारी सिर्फ सैलरी से ही अपना जीवन नहीं चलाते हैं. कारोबारी ठेका लेने के लिए आर्मी के अफसरों की मदद लेते हैं और बदले में उनके बच्चों के भविष्य का ख्याल रखते हैं और इस तरह से भारी भ्रष्टाचार ने देश को धीरे-धीरे खोखला बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. 


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