गुजरात (Gujarat) के मोरबी ब्रिज हादसे में 135 लोगों की मौत हुई है। अब यह मामला कोर्ट (Court) में पहुंच चुका है। गुजरात पुलिस ने इस हादसे पर कोर्ट में कहा कि अगर ब्रिज की केबल का काम ठीक से होता तो यह हादसा नहीं होता। जबकि ब्रिज की मरम्मत का काम देखने वाली ओरेवा कंपनी के मैनेजर ने बयान में कहा है कि भगवान की कृपा न होने के कारण यह घटना हुई है।
कोर्ट में पुलिस ने बताया है कि ठेकेदारों में से 4 के पास तकनीकी डिग्री नहीं है और वे तकनीकी बातें भी नहीं जानते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी आगंतुक को लाइफ जैकेट नहीं दिया गया और टेक्निकल ट्रेनिंग (Technical Training) भी नहीं दी गई। उनका कहना है कि मेंटेनेंस रिपेयर के नाम पर सिर्फ ब्रिज के प्लेटफॉर्म बदले गए थे।
एसएफएल की रिपोर्ट (SFL Report)
अदालत में पुलिस ने एसएफएल की रिपोर्ट भी पेश की है। अभियोजन पक्ष ने फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पुल की फ्लोरिंग को तो बदला गया लेकिन उसके तार नहीं बदले गए थे। उन्होंने कहा कि पुराने तार नई फ्लोरिंग का वजन नहीं उठा सके। साथ ही मरम्मत का काम कर रहे दोनों ठेकेदार भी इस काम को करने की योग्यता ही नहीं रखते थे। फिर भी ठेकेदारों को पुल की मरम्मत का काम सौंपा गया।
आरोपित के वकील की दलील (Argument of accused's lawyer)
आरोपित कंपनी के वकील ने इस पर कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि ओरेवा कंपनी को सब-कॉन्ट्रैक्ट काम में तेजी लाने के लिए सौंपे गए थे। उन्होंने बताया कि प्रकाश परमार ने 2007 में काम किया था और फिलहाल उनका इसमें कोई रोल नहीं है। घटना के लिए आरोपित के वकील ने ऑरेवा कंपनी को जिम्मेदार बताया है। जबकि कोर्ट में ओरेवा कंपनी के मीडिया मैनेजर दीपक पारेख ने कहा है कि कंपनी के एमडी जयसुख पटेल एक अच्छे इंसान हैं। 2007 में प्रकाशभाई को काम सौंपा गया और काम बखूबी भी किया गया। इसी वजह से उन्हें फिर से काम दिया गया। दीपक पारेख का कहना है कि पहले भी हमने मरम्मत की थी। पर इस बार भगवान की कृपा नहीं होगी इसलिए यह त्रासदी हुई है।
यह भी पढ़ें- Gujarat: मोरबी हादसे में 132 लोगों की मौत, पीएम मोदी ने रद्द किया रोड शो