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जानिए युगपुरूष स्वामी विवेकानंद के जीवन के 3 उद्देश्य और ऐसे बने नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद

जानिए युगपुरूष स्वामी विवेकानंद के जीवन के 3 उद्देश्य और ऐसे बने नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद

युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को हुआ। उनके जन्मदिन को हर साल युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके घर का नाम नरेंद्र दत्त था। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे।

स्वामी विवेकानंद की प्राथमिक शिक्षा घर में ही हुई, इसके बाद वह कई स्थानों पर पढ़ने गए। बचपन से ही नरेंद्र को ध्यान का शौक था और एक बार नरेंद्र का ध्यान ऐसा लगा की उनके पास से सांप भी निकल गया पर नरेंद्र को पता ही नहीं चला। स्वामी विवेकानंद को कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़, तैराकी का शौक था उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्य के कारण लोग उन्हें मंत्रमुग्ध होकर देखते रह जाते, घर अपर पिता की विशरशील पुरुषो से चर्चा होती, नरेंद्र उस चर्चा में भाग लेते और अपने विचारो से सभी को आश्चर्यचकित कर देते, उन्होंने बी.आ की शिक्षा प्राप्त की, इस समय तक उन्हें पश्चात् और भारतीय संस्कृति का अध्यन कर लिया था।

स्वामी विवेकानंद ने जीवन के 3 उद्देश्य बनाये थे

पहला उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना निर्धारित किया।

उनका दूसरा कार्य था हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओ की श्रद्धा जमाना

उनका तीसरा कार्य था भारतीयों की संस्कृति, इतिहास और आध्यातिम्क परम्पराओ का योग्य उत्तराधिकारी बनाना।

स्वामी विवेकानंद एक बार रामकृष्ण परमहंस से तर्क-वितर्क करने के उद्देश्य से उनसे मिलने पहुंचे, मिलने के पश्चात उन्हें अभूत आत्म-साक्षात्कार हुआ और वह रामकृष्ण परमहंस के सिद्धांतों और विचारों से प्रभावित हो, उन्हें अपना गुरू मानने लगे।

ऐसे बने नरेंद्र दत्त से स्वामी विवेकानंद

स्वामी जी का राजस्थान के राजपुताना और विशेषकर खेतड़ी से एक प्रमुख संबंध रहा है। उन्हें विवेकानंद का नाम राजपुताना के खेतड़ी में मिला। प्रसिद्ध फ्रांसिसी लेखक रोमां रोलां ने अपनी किताब द लाइफ ऑफ़ विवेकानंद एंड द यूनिवर्सल गोस्पल में लिखा है कि भारत का प्रतिनिधितत्व करते हुए शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में जाने से पहले खेतड़ी के राजा अजीतसिंह के आग्रह पर स्वामीजी ने विवेकानंद नाम स्वीकार किया था।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। सन्‌ 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। यूरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।

फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। 4 जुलाई सन्‌ 1902 को उन्होंने देह त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।

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