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वैवाहिक दुष्कर्म अपराध है या नहीं? जानें इस पर क्या कहता है भारतीय संविधान

वैवाहिक दुष्कर्म अपराध है या नहीं? जानें इस पर क्या कहता है भारतीय संविधान

 

मैरिटल रेप (Marital Rape) यानी वैवाहिक दुष्कर्म का मामला एक बार से फिर चर्चा में आ गया है। दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने बुधवार को इसे लेकर बंटा हुआ फैसला सुनाया। इस मामले में एक जज ने कहा कि- IPC की धारा 375 संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 14 (Article 14) का उल्लंघन है। लिहाजा पति को पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर सजा दी जानी चाहिए। वहीं, दूसरे जज ने इसे अपराध मानने से मना कर दिया।

क्या है वैवाहिक दुष्कर्म?
जब एक पुरुष अपनी पत्नी की बिना सहमति के उसके साथ शारीरिक जबरन संबंध बनाता है तो वह वैवाहिक दुष्कर्म कहलाता है। इसके लिए पति पत्नी पर किसी प्रकार के बल का इस्तेमाल करता है या किसी ऐसे शख्स को जिसकी पत्नी को परवाह हो उसे चोट पहुंचाने का कहकर डराता है।

वैवाहिक दुष्कर्म पर भारत का कानून
दुष्कर्म के मामले में यदि आरोपी खुद महिला का पति है तो उस पर दुष्कर्म का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। IPC की धारा 375 में इसे परिभाषित करते हुए वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद बताया गया है। धारा 375 के मुताबिक, अगर पत्नी की उम्र 18 साल से ज्यादा है तो पति द्वारा बनाए गए संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। भले ही इसके लिए पति ने पत्नी की मर्जी के खिलाफ जाकर उसके साथ जबरदस्ती की हो।

इस तरह मिल सकता है न्याय
इस तरह की प्रताड़ना का शिकार हुई महिला अपने पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत यौन हिंसा का केस दर्ज कर सकती है और अगर महिला को चोट भी आई है तो वो IPC की धाराओं में भी केस दर्ज करा सकती है। इतना ही नहीं पीड़ित महिलाएं 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून के तहत भी अपने पति के खिलाफ यौन हिंसा का मामला दर्ज करा सकती हैं।

वैवाहिक दुष्कर्म पर सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में साल 2017 में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण भारतीय समाज (Indian Society) में विवाह की व्यवस्था को "अस्थिर" बना सकता है। ऐसा कानून पत्नियों के लिए पति के उत्पीड़न के हथियार तौर पर काम करेगा। वहीं, साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (CJ Deepak Mishra) ने एक कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार इसे अपराध घोषित करने की मांग कर रहे हैं।    

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