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अगले 3 साल में भारत होगा कैश लाइट देशों की गिनती में शामिल!

अगले 3 साल में भारत होगा कैश लाइट देशों की गिनती में शामिल!

 

बैंकिंग रेग्युलेटर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने अगले तीन साल के लिए 12 लक्ष्यों की सूची तैयार की है, जिसमें डिजिटल पेमेंट को चार गुना बढ़ाना, पेपर बेस्ड ट्रांजैक्शन में कमी लाना, पेमेंट प्राइसिंग को बेहतर बनाना, ग्राहकों की शिकायतों के निपटारे के लिए बेहतर व्यवस्था करना और नए पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर्स (PSO) की सर्विस शुरू कराना शामिल है।

रिजर्व बैंक ने तय वक्त तक लक्ष्य हासिल करने के लिए बुधवार को जारी पेमेंट्स सिस्टम्स विजन 2022 डॉक्युमेंट में सभी स्टेकहोल्डर्स और गवर्निंग बॉडीज की तरफ से उठाए जानेवाले कदमों की व्यापक कार्ययोजना का जिक्र किया था। रिजर्व बैंक ने कहा है, सोसायटी को लेस-कैश बनाने की तरफ उठे कदम बढ़ाए जा रहे हैं। अब तक पेमेंट सिस्टम्स से कमोबेश दूर रहे तबकों को फायदा दिलाने के साथ ही बेहतर क्षमता वाली, सेफ, सिक्योर, एक्सेसिबल और अफोर्डेबल पेमेंट सिस्टम की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करने की भी कोशिश हो रही है।

आरबीआई ने मौजूदा पेमेंट सिस्टम में सुधार लाने के लिए प्रतिस्पर्धा, लागत, सहूलियत और विश्वास सहित ऐसे चार क्षेत्रों का चुनाव किया है जहां उसकी तरफ से नीतिगत दखल दिया जा सकता है। उसने यह भी तय किया है कि कार्ड के जरिए होने वाले ट्रांजैक्शंस में अगले 3 साल में 6 गुना की बढ़ोतरी हो सकती है और इससे भारत कैश लाइट देशों की गिनती में शामिल हो जाएगा।

बैंकिंग रेग्युलेटर का यह भी मानना है कि विजन पीरियड में कैश ऑन डिलीवरी मेथड से होने वाले पेमेंट में कमी आएगी, जो अभी कस्टमर्स के लिए पेमेंट का सबसे अहम तरीका बना हुआ है। रिजर्व बैंक ने NEFT और RTGS की ट्रांजैक्शन लिमिट और ड्यूरेशन विंडो बढ़ाने पर भी विचार किया है और आने वाले समय में यूजर्स को बिना इंटरनेट और स्मार्टफोन वाला यूनिवर्सल पेमेंट सॉल्यूशन मुहैया कराने पर भी विचार करेगा।

बैंकिंग रेग्युलेटर ने यह भी कहा है कि सिस्टम को लेकर होने वाले रेग्युलेटरी चेंज और कॉम्पिटिशन में बढ़ोतरी से पेमेंट सर्विसेज चैनल अगले तीन साल में सस्ता हो जाएगा। डॉक्युमेंट के मुताबिक, कस्टमर्स को दी जानेवाली ऐसी सर्विसेज की प्राइसिंग में विजन पीरियड के दौरान मौजूदा स्तर के मुकाबले कम से कम 100 बेसिस प्वाइंट्स की कमी आ सकती है। इसके लिए ऐड वेलोरम रेट्स के बजाय ट्रांजैक्शन के हिसाब से रेट तय करने का भी जिक्र है क्योंकि ट्रांजैक्शन वैल्यू से सिस्टम यूसेज का कोई लेना देना नहीं होता।

 


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