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प्रेमी जोड़े की याचिका पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, बाल विवाह निषेध कानून किसी धर्म को नहीं देता कोई छूट

प्रेमी जोड़े की याचिका पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, बाल विवाह निषेध कानून किसी धर्म को नहीं देता कोई छूट

 

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने (Punjab Haryana HighCourt) एक प्रेमी जोड़े की सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के अनुसार यौवन परिपक्वता के बाद विवाह वैध माना जाता है, लेकिन यह बाल विवाह निषेध अधिनियम (child marriage prohibition act) से बचने का आधार नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम का कानून किसी भी धर्म (Religion) को इस प्रकार की छूट नहीं देता है। हालांकि हाईकोर्ट ने विवाह योग्य आयु न होने पर भी प्रेमी जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दे दिया है। 

दरअसल, याचिका दाखिल करते हुए जोड़े ने बताया था कि वह मुस्लिम धर्म से हैं और शादी कर चुके हैं। दोनों के घरवाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं और ऐसे में उन्हें जान का खतरा लग रहा है। अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर उन्होंने अमृतसर (Amritsar) के एसएसपी को मांगपत्र भी सौंपा था। मुस्लिम धर्म के अनुसार यौवन परिपक्वता की स्थिति में विवाह को मान्यता दी जाती है। हाईकोर्ट ने कहा कि लड़की की आयु करीब 18 वर्ष है, लेकिन लड़के की आयु दस्तावेजों के अनुसार साढ़े 16 वर्ष है। मुस्लिम धर्म के अनुसार भले ही उनका विवाह वैध हो, लेकिन जम्मू-कश्मीर में लड़की के घरवालों ने बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई है और इस अधिनियम में किसी भी धर्म को कोई छूट नहीं है। 

इस पर लड़के ने कहा कि उन्हें यहां सुरक्षा दी जाए। ताकि वे शिकायत के मामले में कानून के अनुरूप केस को लड़ सकें। हाईकोर्ट ने याची पक्ष की दलीलें सुनने के बाद कहा कि संविधान (Constitution) प्रत्येक नागरिक को जीवन और सुरक्षा का अधिकार देता है। ऐसे में जोड़े को अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने अमृतसर के एसएसपी को आदेश दिया है कि वे जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

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