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आखिर पानी में क्यों तैरते हैं नल नील के पत्थर, रामसेतु को लेकर होगा शोध

आखिर पानी में क्यों तैरते हैं नल नील के पत्थर, रामसेतु को लेकर होगा शोध

 

उज्जैन: कभी सोचा है कि भगवान श्री राम की सेना में शामिल नल और नील के हाथों से बने रामसेतु के पत्थर समुद्र में कैसे तैरते थे ? यही जानने के लिए इसका मंथन भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में शुरू हो गया है। इसको लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज ने विक्रम विश्वविद्यालय के साथ एक एमओयू (AMU)भी साइन किया है।

इस पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर अखिलेश पांडेय ने बताया कि "पिछले साल से विश्वविद्यालय ने रामचरित मानस में विज्ञान पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। इस पाठ्यक्रम के तहत कई अलग-अलग शोध भी लगातार किए जा रहे हैं। पिछले साल कुल 20 विद्यार्थियों ने एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम में हिस्सा लिया था। इस बार भी पाठ्यक्रम को लेकर विद्यार्थियों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है।

रामसेतु को लेकर भी हो रहा है शोध

उन्होंने बताया कि, "रामचरित मानस में विज्ञान" की पड़ताल करने के लिए अब इंजीनियरिंग कॉलेज से भी एमओयू साइन हो गया है। वहीं, डॉक्टर पांडेय ने बताया कि रामेश्वरम से श्रीलंका के बीच बनाए गए रामसेतु को लेकर भी शोध किया जा रहा है कि उस समय किन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। इन पत्थरों में किस प्रकार के गुण, केमिकल, खनिज आदि शामिल हैं।  इसे लेकर सिविल इंजीनियरिंग के विद्यार्थी पड़ताल कर रहे हैं। इस पूरे शोध में कम से कम 1 से 2 वर्ष का समय लगेगा।"

नए शोध के लाभ 

बता दें कि रामसेतु को लेकर विभिन्न प्रकार की संस्थाएं भी शोध कर चुकी है जिसमें आईआईटी (IIT)के विद्यार्थी भी शामिल है। अब नए शोध से नए लाभ होने की संभावनाएं जताई जा रही है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर अखिलेश पांडेय के अनुसार पानी में तैरने वाले पत्थर हल्के ही होंगे, और अगर ऐसा हुआ तो इनका उपयोग ऐसे स्थानों पर किया जा सकता है जहां पर भूकंप आदि प्राकृतिक आपदा का खतरा रहता है। इसके अलावा इन पत्थरों का इस्तेमाल सिंहस्थ आदि धार्मिक आयोजन के दौरान नदी पर अस्थाई पुलों में भी  किया जा सकता है। विक्रम विश्वविद्यालय के सीनियर प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा के अनुसार विश्वविद्यालय द्वारा जो शोध का नया एमओयू साइन किया गया है, उसकी फंडिंग भी बाहर से ही की जाएगी। इसे लेकर फिलहाल योजना तैयार की जा रही है। 

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