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नील आर्मस्ट्रांग का पृथ्वी से चांद तक का सफर, जानें

नील आर्मस्ट्रांग का पृथ्वी से चांद तक का सफर, जानें

 

चांद पर जाने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन आज हम आपको उनके धरती से चांद के बीच के सफर के बारे में बताएंगे। किसी भी व्यक्ति के लिए चांद पर जाना आसान नहीं होता। उनके लिए भी नहीं था, तो आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके इस सफर की कुछ दिलचस्प बातों को जानते हैं।

नील का उड़ान भरने का सपना
आसमान में उड़ान भरने का सपना देखने वाले नील आर्मस्ट्रांग का जन्म औग्लैज़ देश में ऑहियो के वापकोनेता में 5 अगस्त 1930 को हुआ था। उनके पिता का नाम स्टेफेन कोएँग़ आर्मस्ट्रांग था और उनकी मां का नाम वाइला लौईस एंगेल था। वे दोनों ही एक स्कॉटिश, आयरिश और जर्मन वंशज थे। नील के दो छोटे भाई है, जिनका नाम जून और डीन है। नील का जन्म होने के बाद उनके परिवार ने उसी राज्य में कई बार घर बदलते थे। नील में बचपन से ही उड़ान भरने की रूचि थी, वे अक्सर एयर रेस में हिस्सा लेते रहते थे। जब वे सिर्फ पाँच साल के थे तभी उन्होंने फोर्ड त्रिमोटर में पहली एयरप्लेन फ्लाइट में सवारी की थी।

पहला स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट
नील फ्लाइंग का अभ्यास करने के लिए रोज आर्मस्ट्रांग ग्रास्सी वापकोनेटा एयरफील्ड में ब्लुमे हाई स्कूल जाते थे। इसके लिए उन्हें उनके 16 वें जन्मदिन पर पहला स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी मिला था। आर्मस्ट्रांग एक समझदार विद्यार्थी थे और उन्हें ईगल स्काउट की पदवी भी मिली थी। उन्होंने किशोरावस्था में ही बहुत से ईगल स्काउट अवार्ड जीते और साथ ही उन्हें सिल्वर बफैलो अवार्ड भी मिला था। 1947 में 17 साल की उम्र में आर्मस्ट्रांग ने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढाई पुदुर यूनिवर्सिटी से शुरू की थी।

कॉलेज जाने वाले वे उनके परिवार से दूसरे इंसान थे। पढ़ने के लिए उन्होंने मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) को चुना था। आर्मस्ट्रांग का मानना था कि हम कही भी पढ़कर अच्छे से अच्छी शिक्षा अर्जित कर सकते है। होलीवे (Hollyway) प्लान के तहत ही उनको ट्यूशन फीस दी जाती थी। वहां उन्होंने तक़रीबन 2 साल पढाई की और फ्लाइट ट्रेनिंग ली। उन्होंने एक साल तक US नेवी में काम किया और वही से उन्होंने बैचलर की डिग्री हासिल की। 

आर्मस्ट्रांग का चन्द्र मिशन
आर्मस्ट्रांग को 1969 में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। माइकल कॉलिंस और एडविन इ. बज्ज एल्ड्रिन के साथ वे नासा के पहले चन्द्र मिशन में शामिल हुए थे। 16 जुलाई 1969 को उनकी तिकड़ी अंतरिक्ष पहुंची। मिशन कमांडर आर्मस्ट्रांग ने 20 जुलाई 1969 को चन्द्रमा की सतह पर लैंडिंग की, लेकिन उनके सहकर्मी कॉलिंस कमांड मोड्यूल में ही बैठे रहे।

चांद पर पहला कदम
आर्मस्ट्रांग 10:56 PM को चन्द्रमा मोड्यूल से बाहर निकले थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि, “इंसान का यह छोटा सा कदम, मानव जाती के लिए एक बहुत बड़ी छलांग है।” उन्होंने ही चद्रमा पर पहला कदम रखा था। तक़रीबन 2:30 घंटे तक नील और एल्ड्रिन ने चन्द्रमा के कुछ सैंपल (Sample) इकट्ठा किए और उनपर प्रयोग किया। उन्होंने बहुत सी फोटो भी ली, जिनमें उन्होंने खुद के पदचिन्हों को भी शामिल किया। 24 जुलाई 1969 को वे अपोलो 11 से वापिस धरती पर आ गए और उन्होंने  हवाई के पेसिफिक वेस्ट ओसियन पर लैंडिंग की। धरती पर वापस लौटने के बाद तीनों अंतरिक्ष यात्रियों की जमकर तारीफ हुई और उनका स्वागत भी भव्य तरीके से किया गया था। इतना ही नहीं उनके सम्मान में न्यू यॉर्क में एक परेड भी रखी गई थी। 25 अगस्त 2012 को कोरोनरी बाईपास सर्जरी करवाने के बाद 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।


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