Adipurush Review:प्रभास, कृति सेनन और सैफ अली खान स्टारिंग फिल्म 'आदिपुरुष' बड़े जोर-शोर के साथ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। बंपर एडवांस बुकिंग के बाद जैसी उम्मीद थी सिनेमाघरों में शुक्रवार को सुबह के शोज में तगड़ी भीड़ नजर आई है। 'जय श्री राम' के नारों के बीच मॉर्निंग शोज में ऑडियंस ऑक्यपेंसी 37.67% प्रतिशत तक रही है, जो दोपहर के शोज में बढ़कर 43% तक पहुंच गई है। ऐसे में बढ़ते आंकड़ों के बीच शाम के शोज में दर्शकों की संख्या और बढ़ने वाली है। ऐसे में ओपनिंग डे पर 'आदिपुरुष' बड़ा धमाका करती नजर आ रही है। पहले दिन की तो बात समझ आती है लेकिन दर्शकों द्वारा फिल्म का रिव्यू सांझा करने के बाद दर्शकों के फिल्म देखने की संभावना बहुत कम बताई जा रही है।
#OneWordReview...#Adipurush: DISAPPOINTING.
— taran adarsh (@taran_adarsh) June 16, 2023
Rating: ⭐️½#Adipurush is an EPIC DISAPPOINTMENT… Just doesn’t meet the mammoth expectations… Director #OmRaut had a dream cast and a massive budget on hand, but creates a HUGE MESS. #AdipurushReview pic.twitter.com/zQ9qge30Kv
सहजता और सरलता में मार खाई आदिपुरुष
फिल्म के संगीत और इसके गीतों के साथ ही फिल्म के संवाद भी ‘आदिपुरुष’की बड़ी विफलता है। फिल्म के डॉयलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर राम कथा की मानवता का ध्यान रखने में वह चूक गए हैं। फिल्म देखने के बाद ये भी समझ आता है कि फिल्म के टीजर को लेकर मचे हो हल्ले के बाद ओम राउत ने इसमें कोई खास फेरबदल किया नहीं है। टीजर में दिखे सारे ग्राफिक्स, सारे स्पेशल इफेक्ट्स और सारे किरदार हू ब हू यहां उपस्थित हैं। इस चक्कर फिल्म भी जरूरत से कहीं ज्यादा लंबी हो गई है।
सीता-राम से जानकी-राघव तक
आदिपुरुष देखते ही ऑडियंस में बैठे लोग तुरंत इस फिल्म की तुलना रामानंद सागर के रामायण से करेंगे, एक ये भी कारण है कि इस फिल्म में कई तरह की गलतियां निकलने का...चुंकि मेकर्स पौराणिक कथाओं पर फिल्म बनाने की सोच तो लेते हैं पर वो भूल जाते हैं कि इसमें क्या, कितना और कैसे दिखाना है क्योंकि ये सिर्फ कहानी नहीं कईयों की आस्था पर सवाल बन जाती है। ‘आदिपुरुष’ की तुलना इसके पहले हिंदी में रिलीज हो चुकी राम कथाओं, खासकर रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ से जरूर होगी और जब जब ये तुलना होगी, सबसे पहली खामी जो इस फिल्म की लोगों को दिखेगी, वह है फिल्म में जानकी बनीं कृति सैनन। उनके चेहरे पर जो भी कृत्रिम प्रयोग हो चुके हैं, उन्होंने उनके चेहरे की सौम्यता हर ली है। होंठ और नाक उनके तीखे बनाए गए हैं। और, मिथिला की राजकुमारी के जिस सौंदर्य को देख राम पुष्प वाटिका में मोहित हुए, उसकी छटा तक कृति सैनन की सुंदरता में नजर नहीं आती। यही हाल प्रभास का है। हिंदी में शरद केलकर की आवाज पर रिवर्ब लगाकर वह राम जैसा आभास तो गए, पर उनके शरीर सौष्ठव में न राम जैसा ओज है, न राम जैसा तेज और न ही राम जैसा प्रताप। वह पूरी फिल्म में ‘बाहुबली’ की तीसरा संस्करण ही ज्यादा नजर आए।
किसी ने सच ही कहा है बहुत कठिन होता है, कठिन समय में भी सहज रहना। सरल बने रहना उससे भी दुष्कर है। विशेषकर तब जब पिता राजा रहे हो। भाई हर बात मानने को तैयार रहता हो और पत्नी का सुख इसी में हो कि वह वहीं रहे जहां पति की छाया रहे। राम कथा मनुष्य को सहज होना सिखाती है। ये यह भी सिखाती है कि तमाम धन संपत्ति, सुख, ऐश्वर्य आदि पाकर भी सरल बने रहना है पर यही सहजता और सरलता पूरी ऱिल्म में ऑडियंस प्रभास बने राम में ढूढंती रही।
राम की पारंपरिक छवि नहीं
सिनेमाई छूट के सहारे पौराणिक कथाएं कहने का इतिहास भारत में भी सिनेमा जितना ही पुराना है। पहली राम कथा जब परदे पर उतरी तो राम और सीता दोनों के किरदार एक ही कलाकार ने निभाए। राम की सौम्यता की झलक वहीं से निकली। तेलुगू में बनी रामकथा में राम मूंछों के साथ नजर आए और अब तेलुगू के तथाकथित सुपर सितारे प्रभास जब अपनी नई फिल्म के साथ सिनेमाघरों तक पहुंचे हैं तो वह मूंछों वाले राम ही बने हैं। राम को जिस दिन राजा बनना था, उसका मुहूर्त नक्षत्रों की गणनाएं करके ही निकाला गया। गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी ने ये मुहूर्त निकाला लेकिन वही मुहूर्त राजा दशरथ के मरण और राम के वनवास का कारण बना। राम कथा ऐसी ही छोटी छोटी अनुभूतियों की कहानी है। ये अनुभूतियां कभी केवट प्रसंग में दिखती हैं, कभी शबरी के जूठे बेरों में तो कभी राम और हनुमान के मिलन में। दुश्मन सेना में आकर मरणासन्न की चिकित्सा करने वाले सुषेण वैद्य का प्रसंग विस्तार में देखे तो बड़े सामाजिक प्रभाव वाला है, लेकिन जिस सामाजिक समरसता का पाठ राम ने पढ़ाया, वे यहां उनके पराक्रमी प्रचार के प्रपंच में खो गए हैं।
दर्शकों ने फिल्म देखकर की आलोचना, सोमवार से बिगड़ सकता है खेल
फिल्म देखकर निकले लोगों का कहना है कि इसका VFX बहुत ही बचकाना है, जबकि रावण से लेकर राम और ऐसे तमाम पौराणिक किरदारों के लुक को नए जमाने के हिसाब से दिखाने के चक्कर में डायरेक्टर साहब मात खा गए हैं। जाहिर तौर पर रामायण की कहानी पहले से हर किसी को पता है। ऐसे में सारा दारोमदार फिल्म मेकिंग, एक्टिंग, VFX और सिनेमैटिक एक्सपीरियंस पर टिका हुआ है। लेकिन दर्शकों की निराशा के कारण यह फिल्म पहले वीकेंड के बाद बहुत कमाल करती हुई नहीं दिख रही है।