हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल का बुधवार शाम को 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में आखिरी सांस ली। मंगलेश अंतिम समय में कोरोना वायरस और निमोनिया की चपेट में आने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए थे। मंगलेश के निधन की जानकारी उनके कवि मित्र असद जैदी ने दी। जैदी ने फेसबुक पर निधन की सूचना देते हुए बताया कि उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ है।
साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि मंगलेश डबराल नवंबर के महीने से ही बीमार चल रहे थे। पहले उनका गाजियाबाद के एक अस्पताल में इलाज कराया जा रहा था। हालत में सुधार न होने के कारण उन्हें उनकी सहमति से एम्स में भर्ती कराया गया, जहां उनकी तबीयत स्थिर बनी रही। लेकिन अचानक उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया, जिसके बाद रविवार शाम से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। उनको बुधवार शाम को डायलिसिस के लिए ले जाया जा रहा था कि तभी उनको दिल के दो दौरे पड़े। उनको बचाने की आखिरी समय तक कोशिश की गई, लेकिन बचाया नहीं जा सका।
हिंदी कविताओं कि लिए मशहूर थे मंगलेश
1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन ने कवियों की जिस पीढ़ी की रचना की उनमें मंगलेश डबराल अग्रिम पंक्ति में शुमार रहे। उन्होंने अमृत प्रभात, जनसत्ता, सहारा, प्रतिपक्ष और शुक्रवार में साहित्यिक पत्रकारिता भी की। उनके कविता संग्रहों में पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, मुझे दिखा एक मनुष्य, आवाज़ भी एक जगह है, नए युग में शत्रु और कवि ने कहा शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ जैसे गद्य संग्रह और ‘एक बार आयोवा’ यात्रा वृतांत भी लिखा। विश्व साहित्य के कई बड़े नामों (बर्टोल्ट ब्रेष्ट, पाब्लो नेरूदा, अर्नेस्तो कार्देनल आदि) को उन्होंने हिंदी में अनूदित किया तो उनकी कविताओं का भी कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, शमशेर वर्मा सम्मान, पहल सम्मान आदि सम्मान प्राप्त हुए।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने जताया शोक
त्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने मंगलेश डबराल के निधन को हिंदी साहित्य को एक बड़ी क्षति बताते हुए दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
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