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आज है कार्तिक पूर्णिमा 2025 : क्यों खास है यह दिन, क्या है इसका आध्यात्मिक संदेश

आज है कार्तिक पूर्णिमा 2025 : क्यों खास है यह दिन, क्या है इसका आध्यात्मिक संदेश

 


Kartik Purnima 2025: भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिकी पूर्णिमा, त्रिपुरारी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु विविध देवी देवताओं का पूजन करते और मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। वर्ष के बारह मासों में कार्तिक मास आध्यात्मिक एवं शारीरिक ऊर्जा संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

गंगा स्नान करने का फल मिलता है

कार्तिक पूर्णिमा हमें देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिकी पूर्णिमा, त्रिपुरारी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु विविध देवी देवताओं का पूजन करते और मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

05 नवंबर को मनाया जाएगा कार्तिक पूर्णिमा

जनमानस के अंदर स्थित आसुरी वृतियों के नाश और दैवीय शक्तियों के उत्थान के लिए कार्तिक पूर्णिमा को लक्ष्मी नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। ताकि हम अपने भीतर देवत्व धारण कर सकें अर्थात सद्गुणों को अपने अंदर समाहित कर सकें, नर से नारायण बन सकें। पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 04 नवंबर 2025 को प्रात:काल 10:36 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 05 नवंबर 2025 को सायंकाल 06:48 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि को आधार मानते हुए इस साल कार्तिक पूर्णिमा का पावन पर्व 05 नवंबर बुधवार को मनाया जाएगा।

इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं

विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ। शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं। 

यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है

इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा-स्नान,दीपदान,अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है,क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है।


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