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ऑपरेशन ब्लूस्टार: ऐतिहासिक गुरुद्वारे में हुआ था खून खराबा

ऑपरेशन ब्लूस्टार: ऐतिहासिक गुरुद्वारे में हुआ था खून खराबा

 

ऑपरेशन ब्लू स्टार एक गुरुद्वारे में अंजाम दिया गया था। इसके नाम में मंदिर आता है और नींव एक मुसलमान ने रखी थी। पंजाब के अमृतसर में बना श्री हरिमन्दिर साहिब गुरुद्वारा यानी स्थित स्वर्ण मंदिर में सिखों का पवित्र स्थल है। न केवल सिखों की, बल्कि लोगों की इसमें अटूट आस्था है। यही कारण है कि जब 6 जून 1984 को यहां खून खराबा हुआ। 492 लोगों और 83 जवानों की जान गई तो सिखों की आस्था को गहरी ठेस पहुंची।

5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत हुई थी। सेना का मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था। सेना को जानकारी थी कि स्वर्ण मंदिर के पास की 17 बिल्डिंगों में आतंकवादियों का कब्जा है। इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे आतंकवादियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया।

शुरुआती सफलता के बाद सेना इस ऑपरेशन के अंतिम चरण के लिए तैयार थी। कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल के एस बरार ने अपने कमांडोज़ को मंदिर के अंदर घुसने का आदेश दिए लेकिन यहां जो कुछ होने वाला था इसका अंदाजा बरार को भी नहीं था। बरार के आदेश के बाद चारों तरफ से कमांडोज़ पर फायरिंग शुरू हो गई। इस फायरिंग में 20 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से हमला किया जा रहा था। अब तक साफ हो चुका था कि बरार को मिली इंटेलिजेंस सूचना गलत थी।

सेना की कोशिश किसी भी सूरत में अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की थी जो हरमिंदर साहिब के ठीक सामने है। यही भिंडरावाला का ठिकाना था। लेकिन सेना की एक टुकड़ी को छोड़कर कोई भी मंदिर के अंदर घुसने में कामयाब नहीं हो पाया था। अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की कोशिश में सेना को एक बार फिर कई जवानों की जान से हाथ धोना पड़ा। सेना की स्ट्रैटजी बिखरने लगी थी।

नाम...जरनैल सिंह भिंडरावाला, जब अकाली अलग सिख राज्‍य की मांग कर रहा था तब दमदमी टकसाल में एक लड़का सिख धर्म की पढ़ाई करने आया। उसकी धर्म के प्रति कट्टर आस्‍था ने उसे सबका प्रिय बना दिया और जब टकसाल के गुरु का निधन हुआ तो भिंडरावाला को टकसाल प्रमुख का दर्जा मिल गया। इसके बाद भिंडरावाला का प्रभाव बढ़ने लगा और देश विदेश में उसे समर्थन मिला। भिंडरावाले सिखों के धार्मिक समूह दमदमी टकसाल का प्रमुख था। सिखों के लिए अलग देश की मांग करने वालों में भिंडरावाले को प्रमुख बताया जाता है। हालांकि उसने कभी यह दावा नहीं किया कि उसने सिखों के लिए अलग देश की मांग की है लेकिन उसके बयान से अलगाव का समर्थन होता था। 

सेना अब तक अपने कई जवान खो चुकी थी और तमाम कोशिशों के बाद अब साफ होने लगा था कि आतंकवादियों की तैयारी जबर्दस्त है और वो किसी भी हालत में आत्मसमर्पण नहीं करेंगे। इस बीच मेजर जनरल के एस बरार के एक कमांडिंग अफसर ने बरार से टैंक की मांग की। बरार ये समझ चुके थे कि इसके बिना कोई चारा भी नहीं है। सुबह होने से पहले ऑपरेशन खत्म करना था क्योंकि सुबह होने का मतलब था और जानें गंवाना।

बरार को सरकार से टैंक इस्तेमाल करने की इजाज़त मिली। लेकिन टैंक इस्तेमाल करने का मतलब था मंदिर की सीढ़ियां तोड़ना। सिखों के सबसे पवित्र मंदिर की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाना। 5 बजकर 21 मिनट पर सेना ने टैंक से पहला वार किया। आतंकवादियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे। अब सेना ने कवर फायरिंग के साथ टैंकों से हमला शुरू किया। चारों तरफ लाशें बिछ गईं।

अब तक भी अकाल तख्त सेना के कब्जे से दूर था और सेना को जानमाल का नुकसान बढ़ता जा रहा था। इसी बीच अकाल तख्त में जोरदार धमाका हुआ। सेना को लगा कि ये धमाका जानबूझकर किया गया है, ताकि धुएं में छिपकर भिंडरावाले और उसका मिलिट्री मास्टरमाइंड शाहबेग सिंह भाग सकें। अचानक बड़ी संख्या में आतंकवादी अकाल तख्त से बाहर निकले और गेट की तरफ भागने लगे लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया। उसी वक्त करीब 200 लोगों ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। भिंडरावाले के कुछ समर्थक सेना को अकाल तख्त के अंदर ले गए जहां 40 समर्थकों की लाश के बीच भिंडरावाले, उसके मुख्य सहयोगी मेजर जनरल शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह की लाश पड़ी थी। अमरीक भिंडरावाले का करीबी और उसके गुरु का बेटा था।

6 जून की शाम तक स्वर्ण मंदिर के अंदर छिपे आतंकवादियों को मार गिराया गया था लेकिन इसके लिए सेना को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। सिखों की आस्था का केंद्र अकाल तख्त नेस्तनाबूद हो चुका था। इस वक्त तक किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ये घटना पंजाब के इतिहास को हमेशा के लिए दर्ज होने वाली है। इस ऑपरेशन में कई आम लोगों की भी जान गई। खुद सेना ने बाद में माना कि 35 औरतें और 5 बच्चे इस ऑपरेशन में मारे गए। हालांकि गैर सरकारी आंकड़े इससे कहीं ज्यादा है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल 493 जानें गईं। इस ऑपरेशन में सेना के 4 अफसरों समेत 83 जवान शहीद हुए। वहीं जवानों सहित 334 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। पूर्व सेना अधिकारियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की जमकर आलोचना की. उनके मुताबिक ये ऑपरेशन गलत योजना का नमूना था।


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