साल 2022 का पहला चंद्रग्रहण 16 मई को लगने वाला है। हालांकि इसे भारत में नहीं देख सकेंगे लेकिन सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के खगोलीय प्रभाव पूरी धरती पर दिखता हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि धरती की चांद परिक्रमा करता है और धरती सूर्य का चक्कर काटती है साथ ही वह अपने ही अक्ष पर घूमती रहती है। धरती का अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है। इस घूर्णन और परिक्रमा की प्रक्रिया में चांद और सूरज के बीच कभी- कभी धरती आ जाती है तो कभी चांद धरती और सूर्य के बीच में आ जाता है। इन दोनों परिस्थितियों में ही ग्रहण लगता है।
चंद्रग्रहण कब/कैसे लगता है?
चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse) उस वक्त लगता है जब चांद और सूरज के बीच में धरती आ जाती है। क्योंकि चांद सूरज की ही रौशनी से चमकता रहता है, ऐसे में धरती के बीच में आ जाने से सूरज की किरणें चांद तक पहुंच ही नहीं पाती हैं। इस वजह से चांद पर पूरी तरह से अन्धेरा छा जाता है। चांद पर इस अंधेरे का छाना इसे आम भाषा में चंद्रग्रहण या lunar eclipse कहा जाता है।
कितने प्रकार के होते हैं चंद्रग्रहण
चंद्रग्रहण दो प्रकार के होते हैं। जब धरती से पूरी तरह चांद ढक जाता है तो यह पूर्ण चंद्रग्रहण माना जाता है। पूर्ण चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse) के समय चांद, धरती और सूरज एक सीध में 180 डिग्री का एंगल बनाते हैं और अर्ध चंद्रग्रहण उस वक्त होता है जब धरती से चांद का आंशिक हिस्सा ढक जाता है।
चंद्रग्रहण में लाल दिखता है चन्द्रमा
चंद्रग्रहण में कई बार चांद लाल रंग का नजर आता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धरती के किनारों से चांद की सतह तक रौशनी जाती है। सूरज की किरणों के इस परावर्तन के कारण चांद लाल रंग का नज़र आता है।