हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इसे इसे जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को माताएं संतान प्राप्ति व अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के साथ रखती हैं। यह पर्व पूरे तीन दिन तक चलता है। इसे भी कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। माताएं अपनी संतान के लिए ये व्रत निराहार और निर्जला करती हैं। इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत का पर्व 28 सितंबर से लेकर 30 सितंबर तक चलेगा। जीवत्पुत्रिका व्रत 28 सितंबर को नहाए खाए के साथ आरंभ होगा और 29 सितंबर को पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाएगा। इसके अगले दिन 30 सितंबर को व्रत का पारण होने के साथ ही इस पर्व का समापन किया जाएगा। यानि इस बार 36 घंटे का रहेगा निर्जला व्रत।
जितया व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत से कई कथाएं जुड़ी हैं। जिनमें से एक कथा महाभारत से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा की गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्नास्त्र का इस्तेमाल किया। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। बाद में यह राजा परीक्षित के नाम से जाना गया।